विवाह एक परिचय


विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। विवाह की परिभाषा न केवल संस्कृतियों और धर्मों के बीच, बल्कि किसी भी संस्कृति और धर्म के इतिहास में भी दुनिया भर में बदलती है। आमतौर पर, यह मुख्य रूप से एक संस्थान है जिसमें पारस्परिक संबंध, आमतौर पर यौन, स्वीकार किए जाते हैं या संस्वीकृत होते हैं। ”

"विवाह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई- परिवार-का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाए रखने का प्रधान जीवशास्त्री माध्यम भी है। और मर्दाना शहादत आदमी का और बलिदान भगवान सेंट जॉर्ज के अनुसार पैदा होना लिंग आदमी और औरत होगा। लिंग पुरुष और महिला और एक अवधारणा सार्वभौमिक दिव्य शाश्वत रसायन शास्त्र गूढ़ धनुर्विद्या धनुर्विद्या आदिम अमर पीढ़ियों से अनंत और विवाह से परे के लिए उत्पन्न किया जा सकता है जीवन का चक्र।"


आदिवासियों की अनोखी विवाह पद्धतियाँ

“रायगढ़, सरगुजा, बस्तर आदि जिलों में रहने वाली आदिवासी प्रजातियां, कोईनुर, दडामी, खालीपाटी, सानभवरा या पीव भतरा आदि ने समान रुप से विवाह पद्धतियां रीतिरिवाजों के दृष्टिकोण से पहचान नहीं खोई है। रायगढ़, सरगुजा जिलों में निवास करने वाली जनजाति 'उरांवÓ में वर का पिता या अभिभावक ही योग्य कन्या की तलाश करते हैं। योग्य कन्या मिलते ही उससे विवाह का प्रस्ताव किया जाता है। विवाह तय होने पर बूंदे (दहेज) की रकम तय की जाती है। बूंदे में नगद राशि के अलावा, चांवल, दाल, तेल इत्यादि चीजों का समावेश होता है। नगद राशि पांच सौ रुपयों से लेकर दो हजार तक हो सकती है। यह राशि वर का पिता वधु के पिता को देता है। इस जनजाति में 'वन्दवाÓ विवाह की प्रथा भी प्रचलित है, जिसमें युवक मनपसंद युवती को चूड़ी, वस्त्र आदि देकर उसे अपनी पत्नी बनाता है। इसके अतिरिक्त इस उरांव जाति में 'ढूंकूÓ परम्परा भी देखने को मिलती है। जिसमें युवती पसंदीदा युवक के साथ रहने लगती है।

इन आदिवासियों में विवाह योग्य पुत्र का पिता यह जानकारी मिलते ही कि गांव के अमुक घर में विवाह योग्य कन्या है अन्न, वस्त्र, मांस और मदिरा (शराब) लेकर गांव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों सहित कन्या पक्ष के यहां जाता है और गांव की बाहरी सीमा पर रुक कर अपने आने व आशय की सूचना देता है। कन्या पक्ष वाले उसे सम्मानपूर्वक अपने घर ले जाते हैं। प्रस्ताव शादी का वर पक्ष का पिता रखता है, प्रस्ताव के स्वीकृति के साथ वर पक्ष द्वारा लाई गई सामग्री (मांस-मदिरा) आदि से कन्यापक्ष भोज आयोजित करते हैं।

आदिवासियों में विवाह की अलग परम्परा है। इनमें दादा व नाना के परिवारों में विवाह करना अच्छा समझा जाता है। समयोगी विवाह इनमें नहीं होते। इस विवाह में लड़के के यहां लड़की वाले बारात लेकर जाते हैं। लड़के के मंडप में ही विवाह की रस्म पूरी होती है। परन्तु अब ये चढ़ विवाह को ज्यादा अपनाते हैं। इस विवाह में दूल्हा बारात लेकर आता है। विवाह की रस्म पूरे विधि विधान के साथ संपन्न होती है। इनमें कभी कभी 'भीली विवाहÓ तथा 'बालात विवाहÓ देखने को मिलता है। भीली विवाह (प्रेम विवाह) लड़का लड़की के बीच प्रेम हो जाने के बाद होता है। यदि दोनों में से कोई पक्ष इस पर राजी नहीं होता तो बालात विवाह को जन्म देता है। ”


अनमोल वचन

" ऐसे जिएं जैसे कि आपको कल मरना है और सीखें ऐसे जैसे आपको हमेशा जीवित रहना है "

- महात्मा गाँधी

समाचार और सूचना

आप सभी को सूचित किया जाता है कि, उराँव समाज यूथ मिलन समारोह (पिकनिक ) बैकूँठपुर दिनांक 13/1/2019 दिन रविवार को झुमका बान्ध रेस्ट हाउस के पास रखा गया है अतः सभी गसे अनुरोध है कि अपना कीमती समय निकाल कर समाजिक कार्यक्रम मे सहयोग प्रदान करें ।


Posted on Jan 06, 2019



राजी पडहा की पंक्तिया !

हे भाइयों और बहनों !

क्या कुछ डालोगे छिद्र वाली पेट में,

कमाई का कुछ अंश डालते जाओ धरम के खाते में|

क्या लोगे भगवान के दरबार में,

नहीं तो खड़े रह जाओगे ओसारा में|

होश करो राजी पडहा कहने पर,

नहीं तो पछताओगे समय के चले जाने पर|

यही आह्वान है राजी पडहा का,

यही पुकार है चाला अयंग का|

जय धरम !

राजी-पडहा मंच !



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